Wednesday, November 30, 2016

Kanwal Speaks - November 30, 2016 at 09:47PM

हिंदुस्तान की नपुंसक सुप्रीम कोर्ट को अपने ही ख़ून-पसीने से की गई कमाई का पैसा बैंकों से बदलवाने के लिए भूखे पेट तड़पते कतारों में खड़े गरीब, मज़दूर और दिहाड़ीदार आम जनमानस की पिछले 20 दिनों में हो चुकी 80 से अधिक मौतों से बढ़कर एक तुच्छ से गाने के बजाने और न बजाने और उस पर सबका खड़ा होना अनिवार्य करने की ज़्यादा फ़िक्र है ??? लाहनत है इस देश के कागज़ी संविधान पर ... कार्यपालिका और विधायिका तो वैसे भी कचरे का डिब्बा थीं, अब तो मनुस्मृति के श्लोकों का गुणगान करने वाले इस घटिया और ज़लील देश की न्यायपालिका ने भी अपने आप को गटर की गंदगी साबित कर दिया है ! #कंवल
by अहं सत्य

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