सत्य के ज्ञान का एकमात्र उगम एवं स्रोत अंतःकरण है, वहीँ से समस्त ज्ञान-तत्व प्रकट होता है; बाहर के सब ग्रंथ तो केवल निमित्त भर हैँ, किसी विशुद्ध सत्य-स्वरूप अंतःकरण से उपजी अनादि ज्ञानधारा के कुछ भागमात्र को सहेज कर रखने का, तांकि जो प्राणीमात्र अपने स्वयं के पुरुषार्थ से ज्ञान-स्रोत तक न पहुँच सकते हों उनकी पिपासा को भी इन कलशों में संभाले गये ज्ञान-जल से सुगमतः तृप्त किया जा सके, बस इतनी भर ही इनकी उपयोगिता है; भीतर की ज्ञान-गंगोत्री मेँ कलश रूपी ऐसे अनंत वेद-ग्रंथों को भर सकने का सामर्थ सदैव विद्यमान रहता है, परन्तु कोई आत्मावलंबी पौरुषवान ही उसे प्रकुटित करने योग्य सामर्थवान हो सकता है । #कंवल
by अहं सत्य
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