Thursday, November 12, 2015

Kanwal Speaks - November 12, 2015 at 06:26PM

एक ही ज़ुबाँ थी तेरी मेरी कंवल एक सी रही मिश्री घुलती सदा हमारे कानों में, पर मुझ से नफ़रत क्यूँ इतनी थी मेरे भाई कि मादरी ज़ुबाँ को दग़ा दे गया । #कंवल
by अहं सत्य

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