हिंदुस्तानी सुप्रीम कोर्ट के धर्म के नाम पर वोट मांगने को गैरकानूनी ठहराने वाले फैसले से हिंदुस्तान के अल्पसंख्यकों को सावधान होने की ज़रूरत है क्योंकि इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट के उस पिछले फैसले के हिस्से में ही देखना होगा जहाँ यह ठहराया गया है कि हिंदुत्व धर्म नहीं जीवन पद्धति है, इसका सीधा-सीधा मतलब यह है कि सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्पसंख्यकों के हितों की बात करने वाले राजनीतिक दलों पर और सख़्ती बरती जाएगी, वहीं दूसरी तरफ़ बहुसंख्यक हिंदुत्व का ढिंढोरा पीटने वाले और उसके नाम पर हिंसा और आतंकवाद फैलाने वाले दल इस सबसे सुरक्षित कर दिए गए हैं; असल में हिंदुस्तानी सुप्रीम कोर्ट भी महज़ हिंदूवादी मानसिकता से गर्क हुई संस्था है जो बाहर से इंसाफ़ का सिर्फ छलावा देती है पर यहाँ अल्पसंख्यकों को कभी भी इंसाफ़ नहीं मिल सकता । #कंवल
by अहं सत्य
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