मूर्ख चाहे आस्तिक हों या नास्तिक अपनी कमज़ोरी को छुपाने के लिए किसी न किसी इष्ट का सृजन कर उसकी प्रतिमा के पीछे छुप जाते हैं; और जब ऐसे ही किसी इष्ट की प्रतिमा भंग की जाती है तो आस्तिकता और नास्तिकता का फ़र्क मिटकर सभी मूर्खों की भावनाएं एक समान आहत होती हैं । #कंवल
by अहं सत्य
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