Saturday, August 12, 2017

Kanwal Speaks - August 12, 2017 at 03:47PM

मरते-मरते - प्रोफ़ेसर कवलदीप सिंघ कंवल वो मर गए; उन्हें तो मरना ही था; चलो दम घुटने से मरे, नहीं तो इस हालात में, घुट घुट कर मर जाते; पर उनके मरने से, किस को फर्क पड़ता है .. बस राष्ट्रवाद का, जय गान होना चाहिए; और काट देने चाहिए, अल्पसंख्यक सारे; गाय के नाम पर, विदेशी मिशनरी के नाम पर, और इंदु सरकार के नाम पर; गद्दार हैं सारे के सारे .. तिरंगा ऊंचा लहराओ, और गरीबों के झोपड़े जला डालो, आदिवासियों की बस्तियाँ उखाड़ो, दलितों के हाथ पैर काटो, कर दो बलात्कार, सड़कों पे चौराहों पे, और ठूस दो योनियों में पत्थर, बंदूकों और बूटों तले रोंद दो सब जवानी .. अरे आज़ादी है; अपने मन की अब नहीं करेंगे तो कब करेंगे भला .. #कंवल
by अहं सत्य

Join at
Facebook

No comments:

Post a Comment