Take and Philosophy of "Kawaldeep Singh Kanwal" on this Universe and happenings in and around.
Saturday, April 8, 2017
तेरे भीतर - कंवल रे मन क्या तूँ खोज रहा क्या खोया है तुमने क्या अब तक नहीं पाया मृग रे क्यूँ तूँ तृष्ण हुया क्यूँ बनवा जा भटके जो भटक भटक तुमने है अब तक नहीं जाना न था खोया कभी तुझसे न पाना था कभी बाकी जो था बस तेरा है सद जो तेरा ही रहा संग सदा तेरे है सुगंधित विभोर जिससे वो था तेरे भीतर ही बस तेरे ही भीतर है ... #कंवल - April 09, 2017 at 04:37AM
No comments:
Post a Comment