अकर्मण का यथार्थम अर्थ कर्म से मुक्ति नहीं अपितु कर्म की आसक्ति से मुक्ति है; कर्म से मुक्ति असंभव है, यदि कोई ऐसा बखान भी करता है तो वह केवल निष्क्रिय होने का घोरत्म आडंबर रच रहा है क्यूँकि निष्क्रिय होना भी अपने आप में कर्मबद्ध होना ही है, जबकि कर्म और उसके परिणाम की आसक्ति से छुटकारा प्राप्त कर लेने वाला व्यक्ति उसमें निहित समस्त स्वार्थों से नाता तोड़ कर कर्म-फल के सिद्धांत से ऊपर उठकर जीवित-मुक्त हो जाता है । #कंवल
by अहं सत्य
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