लड़ो, कि जब तक साँस है, चल रहे हैं प्राण इस मिट्टी की ढेरी में, और तब तक एक कतरा भी जब लहू का है बाकी इस तन में तुम्हारे, क्योंकि समर्पण तो बस मुर्दा करते हैं; ज़िंदा तो अपने हकों पर डाका डालने वालों को चीर कर रख देते हैं, फिर भले उनको अपनी तलवार भी अपनी पसली की हड्डी निकालकर ही बनानी पड़े । #कंवल
by अहं सत्य
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