डेरावाद और राजनीति के संबंधों में बिल्कुल पहले मुर्गी आई या अंडा आया जैसा रिश्ता है; अब किसको दोषी ठहराया जाए उन राजनेताओं को जो वोट बैंक के तुष्टिकरण के लिए डेरावाद को सरपरस्ती देते हैं, या फिर उस भीड़ को जो इन डेरों में जाती है, अपना मस्तिष्क और सोचने समझने की शक्ति को कुएं में फेंक और पूरी तरह अंधश्रद्धा से ग्रस्त हो कर, जिसके चलते सत्ता लालायित राजनेताओं को इन डेराधारियों के चरणों में बैठना पड़ता है ?
by अहं सत्य
Join at
Facebook
No comments:
Post a Comment