जिस समाज व सभ्यता में प्रदूषण, गंदगी और अस्वच्छता एक तरह से धर्म और संस्कृति का अभिन्न अंग बन जाएँ और जहाँ प्रकृति का दोहन पुण्य अनुष्ठान माना जाने लगे, वहाँ ढकोसले के लिये बेशक लाखों अभियान चलें पर यह संस्कारों और मानसिकता में जड़ कर चुके घटिया मूल्य और आस्थाएँ कभी स्वच्छता को निकट भी न फटकने देंगे |
#कंवल
by Kawaldeep Singh
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