परम अनुभव और निर्वाण का मार्ग कर्मविहीनता से नहीं अपितु कर्मनिर्लेपता से हो कर साक्षी एवं दृष्टा हो जाने से निकलता है; कर्मविहीनता मात्र एक पाखंड है जो कभी घट नहीं सकता, बल्कि अपने होने का झूठा छलावा देता है, शाश्वत सत्यता केवल कर्म में अकर्मण हो कर्म की समस्त लाग से विरक्त भाव को धारण कर कर्मनिर्लेप हो जाने से ही प्रकुटित होती है । #कंवल
by अहं सत्य
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