कबीर ने समस्त देव पूजा और ठाकुर पूजा का बहुत सख्त शब्दों से खंडन किया है । पर अनेक जगह कबीर के नाम पर और उनकी छाप पर कुछ ऐसी रचनाएँ लिखी हुई मिल जाती हैं, जिनमें देव पूजा और ठाकुर पूजा भी की गई है - शिव, दुर्गा, विष्णु और लक्ष्मी की भी, जिन्हें देख कर घोर अचंभा होता है कि कबीर कहीं आर कहीं पार जैसी दोगली बातेँ क्योँ कर रहे हैँ ! असल मेँ इसका मुख्य कारण यह है कि कबीर के नाम और छाप का उनके बाद कईंयों ने इस्तेमाल किया है और कुछ निमन दर्जे की रचनाओं मेँ तो यह प्रयोग आज भी हो रहा है ... कबीर को मात्र काविक संबोधन मेँ प्रयुक्त करके कईयों ने बहुत कुछ और उनकी अपनी विचारधारा के विपरीत भी (अंट-शंट सहित) लिखा है, जैसे "नानक" छाप को प्रयोग करके उनके बाद वाले गुरुयों ने भी लिखा है और मुख्य सिक्ख धर्म से भागे हुए और विपरीत विचारधारा वाले सोढी मेहरबान और उनके पुत्र सोढी हरि जी आदि भी "नानक" शब्द का ही इस्तेमाल करते थे जिनकी लिखी कविता को सिक्खों मेँ कच्ची बाणी माना जाता हे । बीजक ग्रंथ कबीर के गुज़रने के कई सौ सालोँ बाद लिखा गया, यह असल में कबीर के पदों का संकलन नहीँ है बल्कि कबीर के नाम पर लिखी गई हर तरह की रचनाओं का संकलन है, जिन की विचारधारा को आप कबीर पर नहीँ थोप सकते । कबीर संपूर्ण रुप से निर्गुणवादी थे, अवतारवाद मूर्ति-पूजा इत्यादि के घोर विरोधी थे और उसके साथ ही जाति व्यवस्था पर जितना प्रचुर प्रहार कबीर और रविदास ने किया है उतना शायद ही किसी भक्ति लहर के किसी भी संत ने कभी किया होगा । पर मुश्किल ये है कि कबीर की असली रचनाएँ और उनके नाम पर परोसी जा रही हर प्रकार की कच्ची-पक्की रचनाओं को अलग कर पहचाना थोडा सा मुश्किल है उनके लिए जिनको कबीर के सही दर्शन के बारे मेँ ज्ञान नहीँ है । वैसे आजकल तो "कबीरा खड़ा बाजार मेँ ..." इतिआदि जैसी निमन, अंट शंट और घटिया बातें भी कबीर के नाम पर परोसी जा रही है । #कंवल
by अहं सत्य
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