मेरा फातिहा - प्रोफ़ेसर कवलदीप सिंह कंवल नहीं यकीन लिहाफो चाशनी लपेटने में कंवल मुझको सच कहता हूँ बस लगे कड़वा तो है ये तॉसीर इसकी नहीं खौफ़ो-परहेज़ मुझको है लाहनतों तमग़ों से कोई पर सच न कह पाना कंवल मेरी मौत-ए-ज़मीर होगी बेशक चार कान्धे भी न हों मेरे जनाज़े में कंवल है एक ही ख़्वाहिश कि ईमान ज़िंदा रह जाए मेरा मुलाहद कह दो मुझको या फिर सिरदार-ए-काफ़िरान कोई हूँ खड़ा उन मोमिनों के आगे कंवल रंगे लहू से हाथ जिनके न प्याला-ए-सुकरात से डर न खौफ़ अंजाम-ए-मंसूर से है तैयार यह सीना कंवल हर वार-ए-मुतइस्बी को सहने खा़कसार हूँ बेशक और न हो चाहे कोड़ी भी मोल इस हस्ती का कोई मेरा ज़मीर ख़रीदने को लेकिन कारूँ के खज़ाने भी कंवल कम हैं
by अहं सत्य
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