बलात्कारों और कत्ल़ों का सबने खूब विरोध किया । मैंने भी किया है । पर जब 2, 3 या 6 महीनों में केस की सुनवाई पूरी कर सरेआम फाँसी देने की मांग की जाती है तो यहां एक और मुद्दे पर बात करनी भी लाज़िम हो जाती है । क्यूँकि ख़ुद महिला आयोग के रिकॉर्ड से साबित होता है कि 50 से 75 फ़ीसदी बलात्कार के मामले प्रथम दृष्टया झूठे होते हैं, तो फिर ऐसे केसों में जिस पुरुष पर झूठा बलात्कार का आरोप लगाया जाता है वह भी एक तरह से बलात्कार पीड़ित ही होता है, क्योंकि समाज में सरेआम उसकी सारी इज़्ज़त लूटी जा चुकी होती है ऐसे बलात्कार के झूठे आरोप से । तो क्यों ना उन आधे से भी ज़्यादा केसों में भी फैसला आने पर तुरंत झूठा बलात्कार का आरोप लगाने वाली महिलाओं को भी उन्हीं 2, 3 या 6 महीनों में फाँसी की सज़ा सुना कर सरेआम फाँसी लगाई जाए ? अब बताओ कौन-कौन खड़ा होगा इस मांग के साथ ? #कंवल
by अहं सत्य
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