ज़िंदा कौमियतें जहाँ अपने समाज के ज़िंदा इंसानो की तंगीयों, भूख, बेघरी, तालीम, बेरोज़गारी और रोज़मर्रा की ऐसी हज़ारों मुश्किलों को सुलझाने पर अपना सरमाया खर्च कर अपने आने वाले कल को भी ज़िंदा रखने की सिरतोड़ कोशिशें करती हैं, वहीं दूसरी तरफ़ मुर्दा कौमें अपने रहे सहे स्रोतों से सिर्फ़ मर चुके इतिहास के अवशेषों के बुत्त और यादगारें बनाकर अपने आज और मुस्तकबिल दोनों का ख़ुद ही सर्वनाश कर लेती हैं । #कंवल
by अहं सत्य
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