Saturday, December 24, 2016

Kanwal Speaks - December 25, 2016 at 12:24PM

ज़िंदा कौमियतें जहाँ अपने समाज के ज़िंदा इंसानो की तंगीयों, भूख, बेघरी, तालीम, बेरोज़गारी और रोज़मर्रा की ऐसी हज़ारों मुश्किलों को सुलझाने पर अपना सरमाया खर्च कर अपने आने वाले कल को भी ज़िंदा रखने की सिरतोड़ कोशिशें करती हैं, वहीं दूसरी तरफ़ मुर्दा कौमें अपने रहे सहे स्रोतों से सिर्फ़ मर चुके इतिहास के अवशेषों के बुत्त और यादगारें बनाकर अपने आज और मुस्तकबिल दोनों का ख़ुद ही सर्वनाश कर लेती हैं । #कंवल
by अहं सत्य

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