मेरा किसी भी थोथे राष्ट्रवाद की अवधारणा में लेशमात्र भी विश्वाश नहीं है, क्यूंकि ऐसी किसी भी विचारधारा का मूल केवल एक भूमिखण्ड और उससे जुड़ी राजकीय सत्ता को हर प्रकार से संबंधित मनुष्यों और उनके आधारभूत मानवीय एवं नागरिक अधिकारों के ऊपर मान्यता देना होता है, जिसमें एक भूखंड, उस पर स्थापित राज्य और उस की अति-केंद्रीयकृत सत्ता पर आसीन पदग्राहियों मात्र के हितों की रक्षा के लिये शेष सभी गणों एवं जन का किसी भी सीमा तक शोषण तथा भक्षण करना बिन ग्लानि स्वीकार्य होता है | #कंवल
by अहं सत्य
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