Sunday, March 8, 2015

Kanwal Speaks - March 08, 2015 at 06:35PM

सच को सुनना इतना कठिन नहीं होता, बहुमत सच को सुन सकने की क्षमता रखता है | सच को समझना भी इतना ज़्यादा दुष्कर नहीं है, बड़ी संख्या सच को समझ भी लेती है | पर इसके बाद का रास्ता इतना अत्यंत दुस्साध्य है कि हर एक के बल की बात नहीं रह जाती; सच को सुन कर, समझ कर, उस पे चलना अभूतपूर्व और अद्वितीय होता है, ऐसा आसाधारण कि बस कभी कभी ही ऐसा घटता है; आम लौकिक सामर्थ्य से यह न हो पायेगा, इसके लिये परिस्थितियों की आग में जल कर, सर्व जीवन-सुखों का बलिदान दे कर, समस्त अनुराग-द्वेष और संगियों के साथ रहते हुए भी आसक्तियों का नाता तोड़ कर, एक परिश्रमी तपस्वी की भांति बेलाग जीवन व्यतीत कर ऐसे दिव्य-गुण को धारण करने के योग्य पात्रता प्राप्त करनी पड़ती है | #कंवल

by अहं सत्य



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