Sunday, March 8, 2015

Kanwal Speaks - March 08, 2015 at 08:28PM

मेरा विरोध तत्व से नहीं वाद से है ! तत्व से विरोध कैसा? तत्व तो रचने का नाम है, रच जाने से तो विरोध कदापि हो ही नहीं सकता, सारा विरोध ही समाप्त हो जाता है यहाँ, यहाँ तो केवल गुण फलीभूत होता है, जीवन फूटता है | विरोध तो केवल वाद से ही हो सकता है, क्योंकि वाद की नीव ही द्वैत पे है, इसका मूल ही द्वेष है, इसका आधार स्तंभ ही विच्छेद है, तो वहाँ विरोध स्वाभाविक है, न हो तो हैरानी होगी | #कंवल

by अहं सत्य



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