शास्त्र और ग्रंथ सदियों पहले पका कर पान कर लिये गये ज्ञान-भोजन की बची रह गयी मात्र जूठी पत्तलें भर हैं, जिन्हें केवल विवेकहीन व अकर्मठ आडंबरवादियों के आचमन हेतु ही रख छोड़ा गया है; एक पुरूषार्थी आध्यात्मावलम्बी कभी भी अपनी ज्ञान-भूख की तृप्ति के लिये किसी रख छोड़ी गयी जूठन पर आश्रित नहीं होता अपितु अपने स्वै-शोध परिश्रम व भीतर के साधन-अर्जन से न केवल अपने लिये बल्कि आने वाली कई पीढ़ियों की तृप्ति व शांति हेतु स्वयं ज्ञान-भोजन का निर्माण करता है | #कंवल
by अहं सत्य
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