किसी अनाचारी के मुख से दिये गये ग्रंथोपदेश बिलकुल उतने ही आत्मपोषक और आध्यात्मवर्धक हो सकते हैं जितना कि किन्ही विष्टा-लिप्त मलीन हाथों द्वारा पकाया और परोसा गया भोजन स्वास्थ्यवर्धक या शरीर को किसी भी प्रकार से पोषित करने के योग्य हो सकता है | #कंवल
by अहं सत्य
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